इतने खचाखच भरे सभा मंडप मे
कितने सिकुडकर बैठे है लोग,
के जैसे लगता है
हर एक के बाजू की
एक कुर्सी खाली है ।
गर्म जेबों से हाथ भी निकालना नहीं चाहते,
इस ठंड की मौसम के लिए ख़रीदे
नये दस्ताने दिखाना भी नहीं चाहते !
और ओ है की सबकुछ
खुलकर बोलना चाहता है,
जो ले आया है भरभरके,
नौछावर करना चाहता है
नज्म पे नज्म सुनाना चाहता है,
लेकिन कितने सिकुड़कर बैठे है लोग,
इक नज्म इनको छुये भी तो कैसे !
- कवी सर्वश्रेष्ठ
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